फिक्रे आख़िरत का मुख्तसर बयान بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْم اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ #Part 1 पहला इक्तिबास माद्दीयत परस्ती के इस दौर में वाजेह तौर पर महसूस कर रहा हूं कि हमारे अफ़्कार व आमाल पर अब मज़हब की गिरिफ्त दिन ब दिन ढीली पड़ती जा रही है, और इसकी वजह यह है कि आख़िरतकी वाज़पुर्स का खतरा अब एक तसव्वुरे मौहूम हो कर रह गया है। हांला कि गौर फरमाइये तो मज़हब की बुन्याद ही अक़ीदए आख़िरत पर है। अक़ीदए आख़िरत का मतलब यह है कि इस बात का यकीन दिल में रासिख हो जाए कि हम मरने के बाद फिर दोबारा ज़िन्दा किये जाएंगे और खुदा के सामने हमें अपनी ज़िंदगी के सारे आमालका हिसाब देना होगा और अपने अमल के ए'तिबार से जज़ा व सज़ा दोनों तरह के नताइज का हमें सामना करना पड़ेगा, इसी *यौमुल हिसाब* का नाम मज़हबे इस्लाम की ज़बान में क़ियामत है। बाक़ी अगली पोस्ट में..ان شاء الله *✍अक़ीद-ए-आख़िरत* पेज 4 ●•●┄─┅━━━━━★✰★━━━━━┅─●•●