एक अल्लाह वाले को एक शख्स ने खत लिखा कि: "मेरी आंखे बे इख्तियार गलत चीज यानी ना महरमों (पराई औरत) की तरफ उठ जाती है, इसलिए कोई इलाज बताएं-" हज़रत ने जवाब में लिखा कि: "अगर बे इख्तियार उठ जाती हैं तो आपको फिक्र की क्या जरूरत है? आप परेशान क्यूं हैं? उठने दीजिये क्योंकि गैर इख्तियार चीज पर कोई गुनाह लाज़िम नही आता-" इस जवाब से उनको एहसास हुआ कि मैने गलत बयानी की है... बे इख्तियार आंखे नही उठती हैं- लिहाजा दूसरा खत लिखा कि: "हजरत ! बे इख्तियार तो नही इख्तियार से ही उठती हैं- लेकिन निगाह उठने के बाद नीचे करने की ताक़त नही पाता-" इसका जवाब हजरत ने लिखा कि: "ये बात भी तुम्हारी गलत है, इसलिए कि फलसफे का ये माना हुआ उसूल है कि किसी भी चीज का इख्तियार दोनो तरफ से मुतालिक होता है, तरफैन से मुतालिक होता है यानी आदमी अगर कोई काम कर सकता है तो उस काम को ना करने की भी ताकत रखता है, ऐसा नही कि कर तो सके, लेकिन ना करने की ताकत ना रहे, ये चीज उठा रहा हूं, अगर चाहूं तो ना उठाऊं, दोनो