एक अनोखी तदबीर ,यह वाक्य एक बार जरूर पढ़ें

एक अल्लाह वाले को एक शख्स ने खत लिखा कि:

           "मेरी आंखे बे इख्तियार गलत चीज यानी ना महरमों (पराई औरत) की तरफ उठ जाती है, इसलिए कोई इलाज बताएं-"

हज़रत ने जवाब में लिखा कि:


           "अगर बे इख्तियार उठ जाती हैं तो आपको फिक्र की क्या जरूरत है? आप परेशान क्यूं हैं? 
उठने दीजिये क्योंकि गैर इख्तियार चीज पर कोई गुनाह लाज़िम नही आता-"
इस जवाब से उनको एहसास हुआ कि मैने गलत बयानी की है...

बे इख्तियार आंखे नही उठती हैं-
लिहाजा दूसरा खत लिखा कि:
               "हजरत ! बे इख्तियार तो नही इख्तियार से ही उठती हैं- लेकिन निगाह उठने के बाद नीचे करने की ताक़त नही पाता-"

इसका जवाब हजरत ने लिखा कि:
              "ये बात भी तुम्हारी गलत है, इसलिए कि फलसफे का ये माना हुआ उसूल है कि किसी भी चीज का इख्तियार दोनो तरफ से मुतालिक होता है, 

तरफैन से मुतालिक होता है यानी आदमी अगर कोई काम कर सकता है तो उस काम को ना करने की भी ताकत रखता है, ऐसा नही कि कर तो सके, लेकिन ना करने की ताकत ना रहे, ये चीज उठा रहा हूं, अगर चाहूं तो ना उठाऊं, दोनो बातें इख्तियार मे होती है, ये कैसे कि निगाह उठ तो गई, अब नीची नही कर सकता-"

इस जवाब पर उन साहब को फिर अपनी गलती का एहसास हुआ और तीसरा खत हजरत को लिखा, इसमे उन्होंने लिखा कि:
           "हजरत ! मुआफी चाहता हूं, फिर गलती हुई, निगाह को बचाने की ताकत तो होती है, लेकिन हिम्मत नही होती है-"
हजरत रहमतुल्लाह अलैह ने कहा कि:
           " हां ! ये सही है, बहुत से लोगो को ताकत तो होती है, लेकिन हिम्मत नही करते, और हिम्मत ही से तो सबकुछ होता है, आदमी हिम्मत करे तो पहाड़ को रेज़ा रेज़ा कर दे, अगर आदमी कोशिश करे और हिम्मत करे, तो मालूम नही कहां से कहां पहुंच जाए, 

ये हिम्मत ही तो है कि आज दुनियां कहां से कहां पहुंची हुई है, तो हिम्मत से बहुत कुछ होता है-"
अलगरज, हजरत रहमतुल्लाह ने इनको लिखा कि:

            "आपकी असल बीमारी हिम्मत में कमी है- अच्छा ठीक है, लेकिन ये बताएं कि अगर मैं भी उस वक़्त आपके साथ चल रहा हूं तब भी ऐसा ही होगा कि गैर औरतों को देखते रहोगे, और ये कहोगे कि बचने की हिम्मत नहीं होती" 
इस बात पर उन साहब का खत आया कि:

            "हजरत ! अगर आप साथ हों तो ऐसा नही होगा, फिर तो निगाहे नीची हो जाएंगी-"
फिर हजरत ने उनको जवाब लिखा कि:

           "जब मेरे साथ होने के ख्याल से निगाहे नीची हो सकती हैं तो खालिक दो जहां के साथ होने के तसव्वुर से निगाह नीची क्यूं नही हो सकती?"

ये इस्लाह का तरीका है, अजीब व गरीब तरीके से इस्लाह होती है अगरचे कई कई खतो का तबादला होता था, लेकिन बात दिल मे अच्छी तरह समा जाती थी...

तो बताने की बात ये है कि अल्लाह वालो की सोहबत का एक फायदा ये है कि उनसे इस्लाह के नुस्खे मालूम होंगे, और हम अपनी इस्लाह करने में और गुनाहो से बचने मे कामयाब हो सकेंगे, इसलिए आप हजरात से दरख्वास्त है कि हर शख्स अपनी बातिनी बीमारी की इस्लाह के लिए अल्लाह वालो की सोहबत इख्तियार करे, 

जो आपकी नजर मे नेक परहेजगार बुजुर्ग हैं उनसे राब्ते मे रहे, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है कि सच्चे के साथ रहो-
दुआ है कि अल्लाह तआला हम सबको अपनी इस्लाह की तौफीक दे..!!
आमीन

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