खिलाफते आब्बासिया के कारनामे(अब्बासी खिलाफत)
खिलाफते आब्बासिया के कारनामे(अब्बासी खिलाफत)
भाग 1
अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद पहला अब्बासी ख़लीफ़ा है। उसकी शासन-अवधि मात्र चार साल है। यह सारा समय विरोधियों को कुचलने और नई हुकूमत को मज़बूत बनाने में गुज़रा। ख़लीफ़ा ने इराक़ में शहर अंबार को अपनी राजधानी बनाई और 134 हि./751 ई. में उस शहर के निकट हाशमिया के नाम से नया शहर बताया।
चीनियों से दारुल इस्लाम की जंग
इतिहासकारों ने अब्दुललाह बिन मुहम्मद की बुद्धि, विवेक और अख़लाक़ (सदाचार) की प्रशंसा की है। उनके दौर की एक महत्वपूर्ण घटना जिसे मुसलमान इतिहासकारों ने महत्व दिया, जंगे तालास है। यह जंग राजधानी से बहुत दूर तुर्किस्तान की पूर्वी सीमा पर मुसलमानों और चीनियों के बीच 751 ई. में हुई थी। चीनियों ने मुसलमानों की घरेलू लडा़ई से फ़ायदा उठाकर तुर्किस्तान पर क़ब्ज़ा करने की अन्तिम बार कोशिश की थी, परन्तु इस तालास की जंग में हारने के बाद हमेशा के लिए तुर्किस्तान से हाथ धो बैठे।
खलीफा मंसूर का न्याय और शासन व्यवस्था (136 हि./751 ई. से 158 हि./775 ई.)
मंसूर ने बाईस साल हुकूमत की और खिलाफ़ते अब्बासिया की जडो़ं को मज़बूत कर दिया। मंसूर बडा़ योग्य शासक था। वह विरोधियों के साथ कठोरता से पेश आता था, परन्तु आम प्रजा के लिए वह न्यायप्रिय ख़लीफ़ा था। वह अपना पूरा समय प्रशासन के कामों पर ख़र्च करता था। उसने हुक्म दे रखा था कि जिसे भी हाकिमों (गवर्नरों) से कष्ट पहुँचे वह बिना रोक-टोक उससे शिकायत कर सकता है। वह स्वयं सादा जीवन व्यतीत करता था। एक बार उसकी लौंडी ने उसके शरीर पर पैवन्द लगे हुए कपडे़ देखकर कहा, ''ख़लीफ़ा और पैवन्द लगा हुआ कुर्ता !'' मंसूर ने उसके जवाब में एक शेर पढा़ जिसका अर्थ यह है – ''मर्द उस हालत में इज़्ज़त हासिल कर लेता है कि उसकी चादर पुरानी होती है और उसकी क़मीज़ में पैवन्द लगा होता है।''
1️⃣अब्बासी खिलाफत में बगदाद – दुनिया का अपने वक्त का सबसे बडा शहर
मंसूर का एक बडा़ कारनामा बग़दाद की बुनियाद डालना है। ख़ुलफाए राशिदीन की राजधानी मदीना थी, बनी उमय्या का दमिश्क़। मंसूर ने बनी अब्बास की राजधानी बनाने के लिए दजला नदी के किनारे एक नया शहर आबाद किया जो बग़दाद के नाम से मशहूर हुआ। आगे चलकर बग़दाद ने ऐसी तरक़्क़ी की कि वह दुनिया का सबसे बडा़ शहर बन गया। उसकी आबादी बीस लाख से ज़्यादा हो गई। कहा जाता है कि अपने चरम विकास के ज़माने में बग़दाद में सतरह हज़ार हम्माम (स्नानगृह) उससे ज़्यादा मसजिदें और दस हज़ार सड़कें और गलियॉं थीं।
मंसूर के काल में रूमियों से पुन: लडा़इयॉं शुरू हो गई, जिनमें मुसलमानों को कामयाबी हुई और 155 हि./772 ई. में मंसूर ने रूम के कै़सर (बादशाह) को जिज़्या देने पर मज़बूर कर दिया। मंसूर का शासनकाल ज्ञान-विज्ञान की तरक़्क़ी के लिहाज़ से भी अग्रणी है।
2️⃣अब्बासी खिलाफत में शिक्षा व्यवस्था
बनी उमय्या के समय में शिक्षा अधिकतर ज़बानी दी जाती थी और किताबें लिखने का रिवाज ज़्यादा नहीं हुआ था। मंसूर के समय में पुस्तक-लेखन का काम विधिवत प्रारंभ हो गया। वह पहला ख़लीफ़ा है जिसने सुरयानी, यूनानी, फ़ारसी और संस्कृत में लिखी हुई किताबों का अरबी में अनुवाद करवाया। ये किताबें आम तौर पर गणित, चिकित्सा-शास्त्र, दर्शन और खगोलशास्त्र से सम्बन्धित थीं। इस प्रकार मुसलमानों ने मंसूर के दौर में ज्ञान-विज्ञान की तरक़्क़ी की ओर एक अहम क़दम उठाया।
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