जिक्र-ए-हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हु

☆••जिक्र-ए-हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हु)••☆ (पोस्ट-1,)
🌸विलादत-ए-हजरत इमाम हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हु)
♥️हजरत इमाम हुसैन (रजीअल्लाहु अन्हु) की विलादत-ए-मुबारक 5 शबान 4 हिज्री को मदीना मुनव्वरा मे हुआ,
हुजुर-ए-अकदस (सलल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने आपके कान मुबारक मे अजान दी..!!
मुंह-मुबारक मे लुआब-ए-दहन डाला और आपके लिए दुआ फरमाई फिर सातवें दिन आपका नाम हुसैन रखा और अकीका किया,
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*हजरत इमाम हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हु)  की कुन्नीयत अबु अब्दुल्लाह और लकब "सिब्त-ए-रसुल" व "रैहानातुर रसुल" है,
हदीस शरिफ मे है।,
रसुलल्लाह (सलल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया के हजरत हारून अलैहीस्सलाम ने अपने बेटो का नाम शब्बर व शब्बीर रखा और मैनें अपने बेटो का नाम उन्ही के नाम पर हसन और हुसैन रखा,
(खुत्बात-ए-मुहर्रम सफा-370,)
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*इसलिए हसनैन करिमैन को सब्बर व सब्बीर के नाम से भी याद किया जाता है,
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सुरयानी जुबान मे शब्बर व शब्बीर और अरबी जुबान मे हसन व हुसैन दोनो के माएने एक है और हदीस शरिफ मे है की,
हसन और हुसैन जन्नती नामो मे से दो नाम है, 
अरब के जमाना-ए-जाहीलियत मे ये दोनो नाम नही थें।
(सवाइके मुहर्रीक सफा-118, खुत्बात-ए-मुहर्रम, सफा-370)

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