जिक्र-ए-हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हु)••

🌸••जिक्र-ए-हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हु)••🌸
(पोस्ट-3,)
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👉√...बु--ए--करबला...√👈
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💚️एक रोज हजरत इमाम हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हु) हुजुर (सलल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) की गोद मे तशरिफ फरमा थे। हजरत उम्मे फज्ल भी पास बैठीं। उम्मे फज्ल ने हुजुर (सलल्लल्लाहु अलैही वसल्लम)  की तरफ देखा की आपकी दोनो चश्माने मुबारक से आंसु बह रहे थे। उम्मे फज्ल ने अर्ज किया : "या रसुलल्लाह! यह आंसु कैसे हैं??.."
*तो हुजुर (सलल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया--
"की जिब्रईल ने मुझे खबर दी है की मेरे इस बच्चे को मेरी उम्मत कत्ल कर देगी। जिब्रईल ने मुझे उस सरजमीन की जहां यह बच्चा शहीद होगा सुर्ख मिट्टी लाकर दी है।,
*हुजुर (सलल्लल्लाहु अलैही वसल्लम)  ने इस मिट्टी को सुंघा और फरमाया : "इस मिट्टी से मुझे #बु___ए___करबाला आती है फिर वह मिट्टी हुजुर (सलल्लल्लाहु अलैही वसल्लम)  ने उम्मुल मोमीनी हजरत उम्मे सलमा (रजी अल्लाहु अन्हा) को दे दी और फरमाया : 'उम्मे सलमा इस मिट्टी को अपने पास रखो जब  मिट्टी खुन बन जाए तो समझ लेना मेरा बेटा शहीद हो गया है।..
*हजरत उम्मे सलमा ने उस मिट्टी को एक शीशी मे बंद कर लिया। फिर जिस दिन हजरत इमाम हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हु) करबला मे शहीद हुए उसी रोज वह मिट्टी बंद शीशी मे खुन बन गयी।....!!
(मिश्कात शरिफ, सफा-564, हुज्जतुल्लाहु अलल___आलमीन-477, )
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♥️सबक : हमारे हुजुर (सलल्लल्लाहु अलैही वसल्लम)  को अपने लख्ते जिगर इमाम हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हु) की शहादत का इल्म था। उस सरजमीन का भी जहां यह वाकीया होना था। उस सरजमीन का नाम भी मालुम था। आपसे कोई बात छुपी नही थी। हुजुर (सलल्लल्लाहु अलैही वसल्लम)  को यह भी मालुम था की हजरत  उम्मे सलमा (रजी अल्लाहु अन्हा)  हजरत इमाम हुसैन (रजी अल्लाहु अन्हु) की शहादत के बाद तक जिन्दा रहेंगी तभी तो आपने हजरत उम्मे सलमा से फरमाया : इस मिट्टी को अपने पास रखो। जब यह खुन बन जाए तो समझ लेना मेरा बेटा शहीद हो गया।

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