जवानी कैसे गुजारे

*जवानी कैसे गुज़ारे ?* 


           Part 03

*फ़ैज़ाने क़ुरआन और नौ जवान*


     दिमागी और जिस्मानी स्लाहिय्यतों से सहीह मानो में जवानी ही में काम लिया जा सकता है, इल्मे दीन हासिल करने और मुतालआ करने की उम्र भी जवानी ही है, बुढ़ापे में तो बारहा अक्लो फ़हम की कुव्वते बेकार हो कर रह जाती है, गौरो फ़िक्र की स्लाहिय्यतें कमज़ोर पड़ जाती है, याद दाश्त का खज़ाना खाली हो जाता है, दिमाग खलल का शिकार होने के सबब इंसान बच्चों की सी हरकते करने लग जाता है और उस से बाज़ अवक़ात ऐसी मुज़हका ख़ेज़ हरकत का सुदूर होता है कि बे इख़्तियार हँसी आ जाए।
     लेकिन खुश खबरी है उस नौ जवान के लिये जो तिलावते क़ुरआन का आदि है कि अगर ऐसे नौ जवान को बुढ़ापा आया तो वो इन आज़माइशों और आफतों से महफूज़ रहेगा। जैसा कि मुफ़्ती अहमद यार खान नईमी رحمة الله عليه नक़ल फ़रमाते है : हज़रते ईकरिमा رضي الله عنه फ़रमाते है : जो मुसलमान तिलावते क़ुरआन का आदी हो, उस पर ان شاء الله ये (यानी जवानी में हासिल किये गए इल्म को बुढ़ापे में भूलने की) हालत तारी न होगी।

*✍🏼नुरुल इरफ़ान*

*✍🏼जवानी कैसे गुज़ारे* 8

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