बे वुज़ू नमाज़ पढ़ने पर अज़ाब

बे वुज़ू नमाज़ पढ़ने पर अज़ाब

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْـمٰـنِ الرَّحِـيْـمِ

     हज़रत जलालुद्दीन सुयूती رحمة الله عليه फ़रमाते है कि एक आदमी जिसे लोग मुत्तक़ी (परहेज़गार) की हैसिय्यत से पहचानते थे,

 जब उसका इन्तिक़ाल हो गया और लोगों ने उसे दफ़्न कर दिया तो फरिश्तों ने उससे कहा कि हम तुझे अज़ाब के सौ कोड़े मारेंगे। उसने कहा: क्यों मारोगे? में तो मुत्तक़ी था। फरिश्तों ने कहा: अच्छा चल!

 पचास कोड़े ही मारेंगे। फिर वो आदमी बराबर बहस करता रहा कि मुझे क्यों मोरोगे? 

यहाँ तक कि फ़रिश्ते एक कोड़े पर आ गए और उन्होंने एक कोड़ा मार ही दिया जिससे पूरी क़ब्र आग से भर गई और वो जलकर खाकिस्तर हो गई फिर उसे ज़िन्दा किया गया तो उसने पूछा: अब ये बताओ कि तुमने मुझे ये कोड़ा क्यों मारा? फरिश्तों ने जवाब दिया: तूने एक रोज़ बे-वुज़ू नमाज़ पढ़ ली थी, ये उसी की सजा है।

     वाज़ेह (मालुम) रहे कि जान बूझकर बे-वुज़ू नमाज़ पढ़ना बाज़ फ़ुक़हा के नज़्दीक कुफ़्र है यानी आदमी बे-वुज़ू नमाज़ पढ़ने से काफ़िर हो जाता है।

✍🏼नमाज़ की अहमियत 33

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