नौजवानों के लिए सबक़ आमोज़ वाक़िआ

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                            #इश्क़

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बनी इस्राईल का एक क़स्साब (क़साई) अपने पड़ोसी की कनीज़ पर आशिक़ हो गया- इत्तिफाक़ से एक दिन कनीज़ को उसके मालिक ने दूसरे गांव किसी काम से भेजा- क़स्साब को मौक़ा मिल गया और वो भी उस कनीज़ के पीछे हो लिया- जब वो जंगल से गुज़री तो अचानक क़स्साब ने सामने आकर उसे पकड़ लिया और उसे गुनाह पर आमादा करने लगा-
जब उस कनीज़ ने देखा कि उस क़स्साब की नियत खराब है तो उसने कहा:

           "अय नौजवान तू इस गुनाह में ना पड़ ! हक़ीक़त ये है कि जितना तू मुझसे मुहब्बत करता है उससे कहीं ज़्यादा मैं तेरी मुहब्बत में गिरफ्तार हूं लेकिन मुझे अपने मालिके हक़ीक़ी عز وجل का खौफ इस गुनाह के इर्तिकाब से रोक रहा है.!"

उस नेक सीरत और खौफे खुदा रखने वाली कनीज़ की ज़बान से निकले हुए ये अल्फाज़ तासीर का तीर बनकर उस क़स्साब के दिल में पैवस्त हो गए और उसने कहा:

              "जब तू अल्लाह से इस क़द्र डर रही है तो मैं अपने पाक परवरदिगार से क्यूं ना डरूं- मैं भी तो उसी मालिक का बंदा हूं,जा.......

तू बेखौफ होकर चली जा-"
इतना कहने के बाद उस क़स्साब ने अपने गुनाहों से सच्ची तौबा की और वापस पलट गया-

रास्ते में उसे शदीद प्यास महसूस हुई लेकिन उस वीरान जंगल में कहीं पानी का दूर दूर तक कोई नामो निशान ना था- क़रीब था कि गर्मी और प्यास की शिद्दत से उसका दम निकल जाए- इतने में उसे उस ज़माने के नबी का एक क़ासिद मिला-
जब उसने क़स्साब की ये हालत देखी तो पूछा:

            "तुझे क्या परेशानी है?"
क़स्साब ने कहा:
            "मुझे सख्त प्यास लगी है-"
ये सुनकर क़ासिद ने कहा:

            "आओ ! हम दोनों मिलकर दुआ करते हैं कि अल्लाह हम पर अपनी रहमत के बादल भेजे और हमें सैराब करे यहां तक कि हम अपनी बस्ती में दाखिल हो जाएं-"
क़स्साब ने जब ये सुना तो कहने लगा:

              "मेरे पास तो कोई ऐसा नेक अमल नहीं जिसका वसीला देकर दुआ करूं,आप नेक शख्स हैं आप ही दुआ फरमाएं-"

उस क़ासिद ने कहा:
             "ठीक है मैं दुआ करता हूं,तुम आमीन कहना !"

फिर क़ासिद ने दुआ करना शुरू की और वो क़स्साब आमीन कहता रहा,थोड़ी ही देर में बादल के एक टुकड़े ने उन दोनों को ढांप लिया और वो बादल का टुकड़ा उन पर साया फिगन होकर उनके साथ साथ चलता रहा-!

जब वो दोनों बस्ती में पहुंचे तो क़स्साब अपने घर की जानिब रवाना हुआ और वो क़ासिद अपनी मंज़िल की तरफ जाने लगा-

बादल भी क़स्साब के साथ साथ रहा जब उस क़ासिद ने ये माजरा देखा तो क़स्साब को बुलाया और कहने लगा:

              "तुमने तो कहा था कि मेरे पास कोई नेकी नहीं, और तुमने दुआ करने से इन्कार कर दिया था- फिर मैंने दुआ की और तुम आमीन कहते रहे, लेकिन अब ये हाल है कि बादल तुम्हारे साथ हो लिया है और तुम्हारे सर पर साया फिगन है,सच बताओ ! तुमने ऐसी कौन सी अज़ीम नेकी की है जिसकी वजह से तुम पर ये खास करम हुआ ?"
ये सुनकर क़स्साब ने अपना सारा वाक़िआ सुनाया- इस पर उस क़ासिद ने कहा:

             "अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में तौबा करने वालों का जो मक़ामो मर्तबा है वो दूसरे लोगों का नहीं-"

बेशक गुनाह सरज़द होना इंसान होने की दलील है मगर उन पर तौबा कर लेना मोमिन होने की निशानी है-
(حکایتِ سعدی)

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