अमीरे मुआविया की वफ़ात और यज़ीद की सल्तनत

सवानहे कर्बला 

Part #03

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ
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अमीरे मुआविया की वफ़ात और यज़ीद की सल्तनत

     अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه ने रजब सी 60 ही में दमिश्क़ में लक़्वा में मुब्तला हो कर वफ़ात पाई। आप के पास हुज़ूरﷺ के तबर्रुकात में से इजार शरीफ,

 रिक़मिस मुबारक, मुए शरीफ और तराशहाए नाख़ून हुमायूँ थे। आप ने वसिय्यत की थी की मुझे हुज़ूरﷺ की इजार व रिदाए मुबारक व क़मीज़ में दफ़्न दिया जाए और मेरे इन आज़ा पर जिन से सज्दा किया जाता है हुज़ूरﷺ के मुए मुबारक और तराशहाए नाखून रख दिये जाए।

     अमीरे मुआवियाرضي الله تعالي عنه की वफ़ात के बाद यज़ीद तख्ते सल्तनत पर बैठा और उस ने अपनी बैअत लेने के लिये अतराफ़ व मुमालिक सल्तनत में मकतूब रवाना किये, मदीने का आमिल जब यज़ीद की बैअत लेने के लिये हज़रते

 हुसैनرضي الله تعالي عنه की खिदमत में हाज़िर हुवा तो आप ने उस के फिस्को ज़ुल्म की बिना पर उस को ना अहल क़रार दिया और बैअत से इनकार फ़रमाया, इसी तरह हज़रते ज़ुबैरرضي الله تعالي عنه ने भी इनकार किया।

     हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه जानते थे की बैअत का इनकार यज़ीद के इश्तिआल का बाईष होगा और ना बकार जान का दुश्मन और खून का प्यासा हो जाएगा, लेकिन इमाम के दीयानत व तक़वा ने इजाज़त न दी की अपनी जान की खातिर न अहल के हाथ पर बैअत कर ले और मुसलमानो की तबाही और शरअ व अहकाम की बे हुर्मति और दिन की मज़र्रत की परवाह न करे और ये इमाम जेसे जलीलुश्शान फ़रज़न्दे रसूलﷺ से किस तरह मुमकिन था ?

     अगर इमामرضي الله تعالي عنه उस वक़्त यज़ीद की बैअत कर लेते तो यज़ीद आप की बहुत क़द्रों मन्ज़िलत करता और आप की आफिय्यत व राहत में कोई फ़र्क़ न आता बल्कि बहुत सी दौलते दुन्या आप के पास जमा हो जाती, लेकिन इस्लाम का निज़ाम दरहम बरहम हो जाता और दिन में ऐसा फसाद बरपा हों जाता जिस का दूर करना बाद को मुमकिन न होता। यज़ीद की हर बदकारी के जवाज़ के लिये इमाम की बैअत सनद होती और शरीअते इस्लामिया व मिल्लते हनफिया का नक़्शा मिट जाता।

     हज़रते इमामे व इब्ने ज़ुबैरرضي الله تعالي عنهم से बैअत की दरख्वास्त इस लिये पहले की गई थी की तमाम अहले मदीना इन का इत्तिबाअ करेंगे, लेकिन इन हज़रात के इनकार से वो मन्सूबा ख़ाक मे मिल गया और यज़ीदियो में उसी वक़्त से आतशे इनाद भड़क उठी और ब ज़रूरत इन हज़रात को उसी शब् मदीना से मक्का मुन्तकिल होना पड़ा। ये वाक़या 4 शाबान सी 60 ही का है।

✍🏽सवानहे कर्बला, 113

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