हज़रते इमाम हुसैन की मदीने से रिहलत

सवानहे कर्बला

Part #04

بِسْــــــمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِىْمِ
اَلصَّــلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللّٰه ﷺ

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हज़रते इमाम हुसैन की मदीने से रिहलत

     मदनी से हज़रते इमाम हुसैनرضي الله تعالي عنه की रिहलत का दिन अहले मदीना और खुद हज़रते इमाम के लिये कैसे रंजो अन्दोह का दिन था।

 अतराफे आलम से तो मुसलमान वतन तर्क कर के अइज़्ज़ा व अहबाब को छोड़ कर मदीना तैय्यबा हाज़िर होने की तमन्नाए करे,

 दकी हाज़िरी का शौक़ दुश्वार गुज़ार मन्ज़िले और बहरो बर का तवील और खौफनाक सफर इख़्तियार करने के लिये बेक़रार बना दे। एक एक लम्हे की जुदाई इन्हें शाक हो, और फरज़न्दे रसूल से रिहलत करने पर मजबूर हो।

     उस वक़्त का तसव्वुर दिल को पाश पाश कर देता है जब हज़रते इमामे हुसैनرضي الله تعالي عنه बईरादए रुख्सत आस्तानाए कुदसिय्या पर हाज़िर हुए होंगे और दिदए खून बार अश्के गम की बारिश की होगी। दिल दर्द मन्दे गमे महजुरि से घायल होगा,
 जद्दे करीम को रोज़ए ताहिरा से जुदाई का सदमा हज़रते इमाम के दिल पर रंजो गम के पहाड़ तोड़ रहा होगा, अहले मदीना की मुसीबत का भी क्या अंदाज़ा हो सकता है।

     दीदारे हबीब के फिदाई इस फ़रज़न्द की ज़ियारत से अपने कल्बे मजरूह को तस्कीन देते थे। इन का दीदार इन के दिल का क़रार था, आह ! आज ये क़रारे दिल मदीना से रुख्सत हो रहे है। इमामे आली मक़ामرضي الله تعالي عنه ने मदीना से बहज़ार गम व अन्दोह बादिले नाशाद रिहलत फरमा कर मक्का में इक़ामत फ़रमाई।

✍🏽सवानहे कर्बला, 115

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